Black Turmeric Farming : काली हल्दी की खेती कैसे करें जानें, काली हल्दी की खेती का सही तरीका

Black Turmeric Farming

Black Turmeric Farming : सरकार की ओर से किसानों की आय बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। कई राज्य सरकारें किसानों को परंपरागत खेती के साथ ही औषधीय फसलों की खेती को बढ़ावा दे रही है। इसके लिए किसानों को सब्सिडी का लाभ भी प्रदान किया जाता है। औषधीय फसलों की खेती पर सरकार की ओर से 50 प्रतिशत तक अनुदान दिया जाता है। ऐसे में औषधीय फसलों की खेती करके किसान अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं। इन औषधीय फसलों में एक काली हल्दी भी है। इसकी खेती करके किसान काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। इसकी बाजार मांग काफी रहती है, जबकि इसका उत्पादन कम है। ऐसे में किसान अपने खेत के कुछ हिस्से में काली हल्दी की खेती करके अच्छा लाभ कमा सकते हैं। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से आपको काली हल्दी की खेेती की जानकारी दे रहे हैं।

क्या है काली हल्दी

काली हल्दी वानस्पतिक भाषा में करक्यूमा केसिया और अंग्रेजी में ब्लैक जेडोरी के नाम से जानी जाती है। काली हल्दी के कंद या राईजोम बेलनाकार गहरे रंग के सूखने पर कठोर क्रिस्टल बनाते हैं। राइजोम का रंग कालिमायुक्त होता है। इसका पौधा तना रहित शाकीय व 30 से 60 से.मी. ऊंचा होता है। पत्तियां चौड़ी भालाकार ऊपर सतह पर नीले बैंगनी रंग की मध्य शिरायुक्त होती है। पुष्प गुलाबी किनारे की ओर सहपत्र लिए होते हैं।

काली हल्दी का उपयोग

काली हल्दी अपने चमत्कारिक गुणों के कारण देश विदेश में काफी मशहूर है। काली हल्दी का उपयोग मुख्यत: सौंदर्य प्रसाधन व रोग नाशक दोनों ही रूपों में किया जाता है। काली हल्दी मजबूत एंटीबायोटिक गुणों के साथ चिकित्सा में जड़ी-बूटी के रूप में प्रयोग की जाती है। काली हल्दी का प्रयोग घाव, मोच, त्वचा रोग, पाचन तथा लीवर की समस्याओं को ठीक करने के लिए किया जाता है। यह कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करती है।

काली हल्दी के कैसी भूमि और जलवायु होनी चाहिए

काली हल्दी की खेती के लिए जलवायु उष्ण अच्छी रहती है। इसके लिए 15 से 40 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उचित माना गया है। उसके पौधे पाले को भी सहन कर लेते हैं और विपरीत मौसम में भी अपना अनुकूलन बनाए रखते हैं। इसकी खेती के लिए बलुई, दोमट, मटियार, मध्यम भूमि जिसकी जल धारण क्षमता अच्छी हो उपय ुक्त रहती है। इसके विपरित चिकनी काली, मिश्रित मिट्टी में कंद बढ़ते नहीं है। इसकी खेती के लिए मिट्टी में भरपूर जीवाश्म होना चाहिए। जल भराव या कम उपजाऊ भूमि में इसकी खेती नहीं रहती है। इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. 5 से 7 के बीच होना चाहिए।

कैसे करें काली हल्दी के लिए खेती की तैयारी

सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की गहरी जुताई करें। फिर खेत को सूर्य की धूप लगने के लिए कुछ दिनों तक खुला छोड़ दें। उसके बाद खेत में उचित मात्रा में पुरानी गोबर की खाद डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला लें। खाद को मिट्टी में मिलाने के लिए खेत की दो से तीन बाद तिरछी जुताई कर दें। जुताई के बाद खेत में पानी चलाकर उसका पलेवा कर दें। पलेवा करने के बाद जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी दिखाई देने लगे तब खेत की फिर से जुताई कर उसमें रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए। इसके बाद खेत को समतल कर दें।

काली हल्दी के लिए बुवाई का उचित समय

काली हल्दी की खेती के लिए इसकी बुआई का उचित समय वर्षा ऋतु माना जाता है। इसकी बुवाई का उचित समय जून-जुलाई है। हालांकि सिंचाई का साधन होने पर इसे मई माह में भी बोया जा सकता है।

काली हल्दी की बुवाई कितनी लें बीज की मात्रा

काली हल्दी की खेती के लिए करीब 20 क्विंटल कंद मात्रा प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। इसके कंदों को रोपाई से पहले बाविस्टिन की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए। बाविस्टिन के 2 प्रतिशत घोल में कंद 15 से 20 मिनट तक डुबोकर रखना चाहिए क्योंकि इसकी खेती में बीज पर ही अधिक व्यय होता है।

काली हल्दी की बुवाई/रोपाई का तरीका

काली हल्दी के कन्दों की रोपाई कतारों में की जाती है। प्रत्येक कतार की बीच डेढ़ से दो फीट की दूरी होनी चाहिए। कतारों में लगाए जाने वाले कन्दों के बीच की दूरी करीब 20 से 25 से.मी. होनी चाहिए। कन्दों की रोपाई जमीन में 7 से.मी. गहराई में करना चाहिए। पौध के रूप में इसकी रोपाई मेढ़ के बीच एक से सवा फीट की दूरी होनी चाहिए। मेढ़ पर पौधों के बीच की दूरी 25 से 30 से.मी. होनी चाहिए। प्रत्येक मेढ़ की चौड़ाई आधा फीट के आसपास रखनी चाहिए।

काली हल्दी की पौध तैयार करने का तरीका

काली हल्दी की रोपाई इसकी पौध तैयार करके भी की जा सकती है। इसके पौध तैयार करने के लिए इसके कन्दों की रोपाई ट्रे या पॉलीथिन में मिट्टी भरकर की जाती है। इसके कन्दों की रोपाई से पहले बाविस्टिन की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए। खेत में रोपाई बारिश के मौसम के शुरुआत में की जाती है।

काली हल्दी की खेती में सिंचाई कार्य

सिंचाई काली जल्दी के पौधों को ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। इसके कन्दों की रोपाई नमी युक्त भूमि में की जाती है। इसके कंद या पौध रोपाई के तुरंत बाद उनकी सिंचाई कर देनी चाहिए। हल्के गर्म मौसम में इसके पौधों को 10 से 12 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए। जबकि सर्दी के मौसम में 15 से 20 दिन के अंतर पर सिंचाई करना चाहिए।\

जड़ों में मिट्टी चढ़ाना

रोपाई के 2 माह बाद पौधों की जड़ों में मिट्टी चढ़ा देना चाहिए। पौधों की जड़ों में मिट्टी चढ़ाने का काम हर एक से 2 माह बाद करना चाहिए।

फसल की कटाई

काली हल्दी की फसल रोपाई से ढाई सौ दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कन्दों की खुदाई जनवरी-मार्च तक की जाती है।

पैदावार और लाभ

यदि सही तरीके से इसकी खेती की जाए एक एकड़ में काली हल्दी की खेती से कच्ची हल्दी करीब 50-60 क्विंटल यानी सूखी हल्दी का करीब 12-15 क्विंटल तक का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। काली हल्दी बाजार में 500 रुपए के करीब आसानी से बिक जाती है। ऐसे भी किसान हैं, जिन्होंने काली हल्दी को 4000 रुपए किलो तक बेचा है। इंडियामार्ट जैसी ऑनलाइन वेबसाइट पर आपको काली हल्दी 500 रुपए से 5000 रुपए तक में बिकती हुई मिल जाएगी। यदि आपकी काली हल्दी सिर्फ 500 रुपए के हिसाब से भी बाजार में बिक जाती है तो 15 क्विंटल में आपको 7.5 लाख रुपए का मुनाफा हो जाएगा। यदि इसमें लगने वाली लागत जैसे- बीज, जुताई, सिंचाई, खुदाई में यदि आपका 2.5 लाख रुपए तक का खर्चा भी हो जाता है तो भी आपको 5 लाख रुपए का मुनाफा हो जाएगा।

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