Bitter Gourd Cultivation : किसानों की आय बढ़ाने के लिए सरकार उन्हें रबी और खरीफ की मुख्य फसलों के अलावा सब्जियों और फलों की खेती पर जोर दे रही है। इसके लिए सरकार की ओर से किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। किसानों को सब्जियों की खेती करने के लिए कई राज्य सरकारें किसानों को अनुदान भी उपलब्ध करा रही हैं।
सब्जियों की खेती को प्रोत्साहित करने के मुख्य कारण ये हैं कि सब्जियों की फसल कम समय में तैयार हो जाती है जिसे किसान बेचकर जल्द पैसा प्राप्त कर सकता है। जबकि गेहूं, चना, सरसों आदि लंबी अवधि की फसल होती है। इसलिए किसानों को रबी की मुख्य फसलों के साथ ही सब्जियों की खेती के लिए प्रोत्साहन दिया जाता है। ऐसे में किसान को ऐसी सब्जी की खेती करनी चाहिए जिससे अधिक मुनाफा मिल सके। वैसे तो ऐसी कई सब्जियां हैं जिनसे कम समय में अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। लेकिन इनमें से करेला एक खास ऐसी सब्जी है जिसके भाव बाजार में काफी अच्छे मिल जाते हैं। इससे किसान करेले की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
करेले में होते हैं औषधीय गुण
करेले के गुण के कारण की बाजार मांग काफी रहती है। ये शुगर और डायबिटीज के मरीजों के लिए वरदान से कम नहीं है। डाॅक्टर भी डायबिटीज के मरीजों को करेले का ज्यूस और करेले की सब्जी खाने की सलाह देते हैं। ये शुगर कंट्रोल करने में मददगार होता है। इसका कड़वापन ही इसका सबसे बड़ा गुण है। लेकिन कई लोग इसके कड़वेपन के कारण इसे नमक के पानी में रखते हैं और उसके बाद इसे बनाते हैं। नमक से इसके कड़वेपन को दूर किया जाता है। इसमें कई प्रकार के विटामिन और पोषक तत्व पाएं जाते हैं। इसमें प्रचूर मात्रा में विटामिन ए, बी ओर सी पाए जाते हैं। इसके अलावा कैरोटीन, बीटाकैरोटीन, लूटीन, आइरन, जिंक, पोटैशियम, मैग्नीशियम और मैगनीज जैसे फ्लावोन्वाइड पोषक तत्व भी पाए जाते हैं। इसके सेवन से बहुत सी बीमारियों में आराम मिलता है। इसका सेवन त्वचा रोग में भी लाभकारी होता है। ये रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाए में सहायक है। इसके सेवन से पाचन शक्ति को बढ़ाती है। पथरी रोगियों के लिए भी इसका सेवन काफी लाभकारी बताया गया है। इसके अलावा इसका सेवन उल्टी-दस्त में, मोटापा कम करने के साथ ही खूनी बावासीर व पीलिया रोग भी में आराम दिलाता है। इस तरह करेले के सेवन से बहुत सारे फायदे मिलते हैं।
किसान क्यों करें करेले की खेती
किसान करेले की खेती से बहुत कम लागत पर काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। कई किसान बताते हैं कि इसकी खेती में जो लागत लगती है उसका 10 फीसदी तक अधिक मुनाफा मिल जाता है। क्योंकि बाजार में इसकी मांग बनी रहती है जिससे इसके अच्छे भाव मिल जाते हैं। कई किसान इसकी खेती करके अच्छा मुनाफा ले रहे हैं। यूपी के हरदोई के किसान जो करेले की खेती करते हैं वे बताते हैं कि 1 एकड़ खेत में करेले की खेती करने पर लगभग 30,000 रुपए तक की लागत आती है। किसान को अच्छे मुनाफे के साथ करीब 3,00,000 रुपए प्रति एकड़ का फायदा होता है। इस तरह इसकी खेती लागत से 10 गुना तक कमाई दे सकती है।
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करेले की खेती के लिए कैसी होनी चाहिए मिट्टी (Gourd Farming)
करेले की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। इसके अलावा नदी किनारे की जलोढ़ मिट्टी भी इसकी खेती के लिए अच्छी होती है।
करेले की खेती के लिए कितने तापमान की होती है आवश्यकता?
करेले की खेती अधिक तापमान की जरुरत नहीं होती है। इसकी अच्छे उत्पादन के लिए 20 डिग्री सेंटीग्रेट लेकर से 40 डिग्री सेंटीग्रेट के बीच तापमान होना चाहिए। इसकी खेती के लिए खेत में नमी बनाए रखना जरूरी है।
करेले की बुवाई के लिए उन्नत किस्में
करेले की बुवाई के लिए कई उन्नत किस्में उपलब्ध हैं। किसान अपने क्षेत्र के अनुसार इसका चयन कर सकते हैं। करेले की जो उन्नत किस्में ज्यादा प्रचलन में हैं उनमें कल्याणपुर बारहमासी, पूसा विशेष, हिसार सलेक्शन, कोयम्बटूर लौंग, अर्का हरित, पूसा हाइब्रिड-2, पूसा औषधि, पूसा दो मौसमी, पंजाब करेला-1, पंजाब-14, सोलन हरा और सोलन सफ़ेद, प्रिया को-1, एस डी यू- 1, कल्याणपुर सोना, पूसा शंकर-1 आदि उन्नत किस्में शामिल हैं।
करेले की बुवाई का उचित समय
वैसे तो करेले की खेती बारह मास की जा सकती है। क्योंकि वैज्ञानिकों ने करेले की ऐसी हाईब्रिड किस्में विकसित कर दी है जिससे आप करेले की खेती साल भर कर सकते हैं। इसकी बुवाई को हम तीन तरह से विभाजित कर सकते हैं जो इस प्रकार से हैं।
गर्मी के मौसम की फसल के लिए जनवरी से मार्च तक इसकी बुआई की जा सकती है।
मैदानी इलाकों में बारिश के मौसम इसकी बुवाई जून से जुलाई के बीच की जाती है।
पहाड़ियों क्षेत्रों में इसकी बुवाई मार्च से जून तक की जाती है।
वैसे तो करेले की खेती बारह मास की जा सकती है। क्योंकि वैज्ञानिकों ने करेले की ऐसी हाईब्रिड किस्में विकसित कर दी है जिससे आप करेले की खेती साल भर कर सकते हैं। इसकी बुवाई को हम तीन तरह से विभाजित कर सकते हैं जो इस प्रकार से हैं।
- गर्मी के मौसम की फसल के लिए जनवरी से मार्च तक इसकी बुआई की जा सकती है।
- मैदानी इलाकों में बारिश के मौसम इसकी बुवाई जून से जुलाई के बीच की जाती है।
- पहाड़ियों क्षेत्रों में इसकी बुवाई मार्च से जून तक की जाती है।
करेले के बीजों की बुवाई का तरीका
करेले को दो तरीके से लगाया जा सकता है। एक तो बीजों द्वारा सीधा इसे खेत में बो कर, और दूसरा इसकी नर्सरी तैयार करके। जब पौधे खेत में बोने लायक हो जाए तब इसकी बुवाई कर दें। हम आपको नीचे करेले की बुवाई का तरीका स्टेप-बाई- स्टेप बता रहे हैँ, जो इस प्रकार से है-
- करेले की फसल की बुआई से पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई कर लेनी चाहिए। इसके बाद पाटा लगाकर खेत को समतल बना लेना चाहिए।
- अब करीब दो-दो फीट पर क्यारियां बना लें।
- इन क्यारियों की ढाल के दोनों और करीब 1 से 1.5 मीटर की दूरी पर बीजों की रोपाई कर दें।
- बीज को खेत में करीब 2 से 2 .5 सेमी गहराई पर होना चाहिए।
- बीजों को बुवाई से पूर्व एक दिन के लिए पानी में भिगोना कर रखना चाहिए। इसके बाद छाया में सूखाकर इसकी बुवाई करनी चाहिए।
- खेत में 1/5 भाग में नर पैतृक तथा 4/5 भाग में मादा पैतृक की बुआई अलग अलग खंडों में करनी चाहिए।
- खेत में करेले की पौध रोपाई करते समय नाली से नाली की दूरी 2 मीटर, पौधे से पौधे की दूरी 50 सेंटीमीटर तथा नाली की मेढों की ऊंचाई 50 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।
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करेले की बेल को दें सहारा, नहीं होंगे फल खराब
करेला लत्ती यानि झाड के रूप में बढ़ता है। यदि इसे सहारा नहीं दिया जाए तो इससे सारी फसल खराब होने का डर रहता है। जब करेले का पौधा थोड़ा ही बड़ा हो जाए तो इसे लकडी, बांस, लोहे की छड़ आदि का सहारा देना चाहिए ताकि वे एक निश्चित दिशा में बढ़ सके।
करेले की खेती में सिंचाई की आवश्यकता (Karela ki kheti)
वैसे तो करेले की फसल में कम ही सिंचाई की जरूरत होती है, बस खेत में नमी बनी रहनी चाहिए। इसके लिए इसकी हल्की सिंचाई की जा सकती है। फूल व फल बनने की अवस्था में इसकी हल्की सिंचाई करनी चाहिए। लेकिन इस बात का ध्यान रखें की खेत में पानी का ठहराव नही होना चाहिए। इसलिए खेत में जल निकासी का प्रबंध जरूर करें ताकि फसल खराब न हो।
करेले की फसल में कब करें निराई-गुडाई
करेले की फसल के शुरुआती दौर में निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है। इस समय इसके पौधे के साथ ही कई अनावश्यक दूसरे पौधे उग आते हैँ। इसके लिए खेत की निराई-गुडाई करके इन खपतवार वाले पौधों को हटा कर खेत से दूर फेंक देना चाहिए। शुरुआती दौर में खेत को खरपतवारों से मुक्त रखने पर करेले की अच्छी फसल प्राप्त होती है।
कब करें करेले की कटाई/तुड़ाई
करेले की फसल बुबाई के करीब 60 या 70 दिन में तैयार हो जाती है। फलों की तुड़ाई मुलायम और छोटी अवस्था में ही कर लेनी चाहिए। फलों को तोड़ते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि करेले के साथ डंठल की लंबाई 2 सेंटीमीटर से अधिक होनी चाहिए। इससे फल अधिक समय तक ताजा रहते हैं। करेले की तुड़ाई हमेशा सुबह के समय करनी चाहिए।