Groundnut Farming:
मूंगफली की खेती (Groundnut Farming) तिलहनी फसलों की एक अग्रणी फसल है, जिसका वानस्पतिक नाम अरेकीस हाइपेजिया है, जो की हमारे खाने में तेल के रूप में एक अहम् स्त्रोत है, जो की इसके उत्पादन का करीब 80 फीसदी हिस्सा तेल कर रूप में इस्तेमाल होता है। आधे-मुट्ठी मूंगफली में 426 कैलोरीज़ होती हैं, 15 ग्राम कार्बोहाइड्रेट होता है, 17 ग्राम प्रोटीन होता है और 35 ग्राम वसा होती है। इसमें विटामिन ई, के और बी 6 भी प्रचूर मात्रा में होती है। यह आयरन, नियासिन, फोलेट, कैल्शियम और जि़ंक का अच्छा स्रोत हैं।
मूंगफली की खेती मुख्यतः गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडू तथा कर्नाटक राज्यों में सबसे अधिक की जाती है। अन्य राज्य जैसे मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान तथा पंजाब में भी यह काफी महत्त्वपूर्ण फसल मानी जाने लगी है। राजस्थान में इसकी खेती लगभग 3.47 लाख हैक्टर क्षेत्र में की जाती है जिससे लगभग 6.81 लाख टन उत्पादन होता है।
Seed Specification
मूंगफली की खेती में बीज की मात्रा
मूंगफली के बीज की मात्रा 80-100 किलो/ प्रति हेक्टेयर के हिसाब से बुवाई करना चाहिए।
मूंगफली का बुवाई का समय
आमतौर पर मूंगफली की बुवाई मानसून की शुरुआत के साथ की जाती है। लेकिन जहाँ सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है, प्री-मानसून की बुवाई मई के अंतिम सप्ताह में या जून के पहले सप्ताह में प्री-बुवाई सिंचाई के साथ की जानी चाहिए।
मूंगफली की खेती के लिए अनुकूल तापमान
मूंगफली की वानस्पतिक वृद्धि का इष्टतम तापमान 26 से 30 epC के बीच है। उत्पादन वृद्धि अधिकतम 24-27 ativeC है। यह बढ़ते मौसम के दौरान अच्छी तरह से वितरित वर्षा के 50 से 125 सेमी प्राप्त क्षेत्रों में अच्छी तरह से बढ़ता है, धूप की प्रचुरता और अपेक्षाकृत गर्म तापमान।
मूंगफली की खेती के लिए बीज उपचार
बीज को बोने से पहले 3 ग्राम थाइरम या 2 ग्राम मेन्कोजेब या कार्बेन्डाजिम दवा प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित कर लेना चाहिए। मूंगफली के बीज को फफूंदीनाशक से उपचार करने के पांच-छह घण्टे बाद बोने से पहले बीज को मूंगफली के राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना चाहिए।
Land Preparation & Soil Health
मूंगफली की खेती के लिए उपयुक्त भूमि
मूंगफली की खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है फिर भी इसकी अच्छी तैयारी हेतु जल निकास वाली उपजाऊ एवं पोषक तत्वों से युक्त बलुई दोमट मृदा उत्तम होती है। मृदा का पीएच मान 6.0 से 8.0 उपयुक्त रहता है।
मूंगफली की खेती के लिए भूमि की तैयारी
मूंगफली की खेती के लिए बुवाई से पूर्व 2-3 बार खेत की अच्छी तरह से देशी हल या कल्टीवेटर से अच्छी तरह से जुताई करे, ताकि मिट्टी भुरभुरि हो जाये फिर इसके बाद पाटा चलाकर बुवाई के लिए खेत तैयार करें।
मूंगफली की खेती के लिए भूमि उपचार
दीमक जैसे आदि अन्य कीटो की रोकथाम के लिए क्लोरोपायरीफॉस दवा की 3 लीटर मात्रा को प्रति हैक्टर दर से प्रयोग करें।
Crop Spray & fertilizer Specification
मूंगफली की खेती में खाद एवं उर्वरक
मूंगफली की खेती में बुवाई से पहले खेत तैयार करते समय अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 15-20 टन/एकड़, मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देनी चाहिए। रासायनिक उर्वरक में N:P:K(12.5:25:0) किलो / प्रतिएकड़, 250 किग्रा जिप्सम / प्रतिएकड़ का प्रीलफ्लावरिंग स्टेज पर आवेदन 30 DAS (बुवाई के बाद दिन) आवश्यक रूप से तैयार और विकसित करने के लिए आवश्यक है। ध्यान रहे रासायनिक उर्वरक मिट्टी परिक्षण के आधार पर ही देना चाहिए।
मूंगफली की खेती में लगने वाले रोग एवं कीट और उनके रोकथाम
सफेद लट, बिहार रोमिल इल्ली, मूंगफली का माहू व दीमक प्रमुख है। सफेद लट की समस्या वाले क्षेत्रों में बुवाई के पूर्व फोरेट 10 जी या कार्बोयुरान 3 जी 20-25 कि.ग्रा/हैक्टर की दर से खेत में डालें।
दीमक के प्रकोप को रोकने के लिये क्लोरोपायरीफॉस दवा की 3 लीटर मात्रा को प्रति हैक्टर दर से प्रयोग करें।
रस चूसक कीटों (माहू, थ्रिप्स व सफेद मक्खी) के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली./प्रति लीटर या डायमिथोएट 30 ई.सी. का 2 मि.ली./ली. के मान से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रयोग करें।
पत्ती सुरंगक कीट के नियंत्रण हेतु क्यूनॉलफॉस 25 ई.सी. का 1 लीटर/हैक्टर का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
मूंगफली में प्रमुख रूप से टिक्का, कॉलर और तना गलन और रोजेट रोग का प्रकोप होता है। टिक्का के लक्षण दिखते ही इसकी रोकथाम के लिए डायथेन एम-45 का 2 ग्रा./लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। छिड़काव 10-12 दिन के अंतर पर पुनः करें।
रोजेट वायरस जनित रोग हैं, इसके फैलाव को रोकने के लिए फसल पर इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली./लीटर पानी के मान से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
Weeding & Irrigation
मूंगफली की खेती में खरपतवार नियंत्रण
मूंगफली की अच्छी पैदावार लेने के लिये कम से कम एक निराई-गुड़ाई अवश्य करें। इससे जड़ों का फैलाव अच्छा होता है, साथ ही भूमि में वायु संचार भी बढ़ता है। और मिट्टी चढ़ाने का कार्य स्वतः हो जाता है, जिससे उत्पादन बढ़ता है। यह कार्य कोल्पा या हस्तचलित व्हील हो से करना चाहिए।
रसायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण हेतु पेण्डीमिथेलीन 38.7 प्रतिशत 750 ग्रा. सक्रिय तत्व प्रति हेक्टर की दर से बुवाई के 3 दिन के अंदर प्रयोग कर सकते है या खडी फसल में इमेजाथापर 100 मि.ली. सक्रिय तत्व को 400-500 लीटर पानी में घोल बनाकर बोनी के 15-20 दिन बाद प्रयोग कर सकते हैं। साथ ही एक निराई-गुड़ाई बुवाई के 30-35 दिन बाद अवश्य करें।
मूंगफली की खेती में सिंचाई
मूंगफली वर्षा आधारित फसल है अतः सिंचाई की कोई विशेष आवश्यकता नहीं होती है। खेत में अवश्यकता से अधिक जल को तुरंत बाहर निकाल देना चाहिए अन्यथा वृद्धि व उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। ग्रीष्मकालीन मूंगफली की सलाह दी जाती है कि फसल की सिंचाई शारीरिक वृद्धि के चरणों में करें। ब्रांचिंग (25-30 DAS), फूल (40-45 DAS), खूंटी का निर्माण (55-60 DAS), खूंटी में प्रवेश (65-70 DAS), फली गठन (80-85 DAS), फली विकास (91-95 DAS), फली भरने की अवस्था (102-107 DAS) और बुवाई के बाद आम सिंचाई के साथ पकने (115-120 DAS)। *DAS (बुवाई के बाद के दिन)
Harvesting & Storage
मूंगफली की फसल का कटाई समय
परिपक्वता के प्रमुख लक्षण हैं पत्ते का पीला पड़ना, पत्तियों का पकना और पुरानी पत्तियों का गिरना। फली परिपक्व तब होती है जब यह सख्त हो जाती है और जब कोशिकाओं के अंदरूनी तरफ गहरा रंग होता है। परिपक्वता से पहले कटाई करने से बीजों के सिकुड़ने के कारण उपज कम हो जाती है जब वे सूख जाते हैं। कटाई में देरी करने से बीजों को गुच्छों की किस्म में सुप्त होने के कारण दायर में ही अंकुरित किया जाता है।
मूंगफली फसल की सफाई एवं सुखाई
मूंगफली की कटाई के समय, फली में आमतौर पर 40% (गीला आधार) से अधिक नमी होती है और शारीरिक परिपक्वता में व्यापक रूप से भिन्न होती है। सुरक्षित भंडारण या विपणन के लिए नमी को 10% या उससे कम करने के लिए फली को साफ और सूखना पड़ता है।
ढलाई या अन्य प्रकार की गिरावट को रोकने के लिए सुखाने को तेजी से किया जाना चाहिए लेकिन गुणवत्ता को कम करने के लिए बहुत तेजी से नहीं। यह वांछनीय स्वाद, बनावट, अंकुरण और समग्र गुणवत्ता बनाए रखने में मदद करेगा।