Honey Bee Cultivation In India : मधुमक्खी पालन एक ऐसा व्यवसाय (Business) जो कभी खत्म नहीं होगा. सभी जानते हैं कि हेल्थ के लिए शहद (Honey) कितना फायदेमंद है. शहद के औषधीय गुणों की वजह से आयुर्वेद में इसे खास जगह दी गई है. प्राचीन काल से ही इसका इस्तेमाल कई बीमारियों में किया जाता रहा है. शहद के सेवन से ना केवल मोटापे को कम किया जा सकता है, बल्कि पाचन प्रक्रिया में सुधार से लेकर कमजोरी दूर करने तक में इसका इस्तेमाल होता है. लोग अलग-अलग तरीके से जरूरत के हिसाब से शहद का इस्तेमाल करते हैं. शहद की अत्याधिक मांग की एक बड़ी वजह ये है कि बड़ी से बड़ी कंपनियां भी इसकी पूर्ती करने में असमर्थ है. कई बार इसकी शुद्धता पर भी सवाल खड़े हो जाते हैं क्योंकि बहुत सी कंपनियों के शहद में मिलावट पाई गई. अगर आप एक अच्छ बिजनेस का विकल्प तलाश कर रहे हैं तो मधुमक्खी पालन से अच्छा कोई नहीं है.
मधुमक्खी पालन के लिए सरकार करेगी मदद (Government will help for beekeeping)
सबसे बड़ी बात ये है कि मधुमक्खी पालन के लिए सरकार लोन (Loan) और ट्रेनिंग (Training) भी उपलब्ध करती है. बस आपको जरूरत है अच्छी प्लानिंग (Planning) की. गौरतलब है कि मधुमक्खी पालन लघु उद्योग (Small Industry) में आता है, इसके लिए सरकार से 2 से 5 लाख तक की आर्थिक सहायता (Subsidies) ली जा सकती है. मधुमक्खी पालन का बिजनेस MSME विभाग के तहत आता है, इसके लिए केंद्र (Central Government) और राज्य सरकार (State Government) की तरफ से कई योजनाएं चलाई जा रही है. जिसका फायदा (Profit) उठाकर आप भी मधुमक्खी पालन के बिजनेस से जुड़ सकते हैं. आप सरकार की योजनाओं (Scheme) से कैसे फायदा उठा सकते हैं.
मधुमक्खी पालन की यूनिट का स्ट्रेक्चर (Structure of Beekeeping Unit)
मधुमक्खी पालन के लिए कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना होगा. इसके लिए ऐसी सुरक्षित जगह का चयन करें, जहां पेड़-पौधे हो. यानी इसका पालन आम, अमरूद और अन्य फलों के बागों में भी कर सकते हैं. अगर किसी बाग में मधुमक्खी का पालन करते हैं तो एक तीर से दो निशानें होंगे. इसका मतलब ये हुआ कि आप बाग में आने वाले फलों को बेचने के साथ-साथ शहद तैयार कर उसकी बिक्री करेंगे तो मुनाफा कई गुना बढ़ जाएगा. मधुमक्खियों की 100 से 200 पेटियां रखने के लिए दो से ढाई हजार स्क्वायर फीट तक की जमीन चाहिए. मधुमक्खी की उस प्रजाति का चयन करें, जो ज्यादा शहद उत्पादन करती हो. एक पेटी की कीमत ढाई से चार हजार आती है. एक पेटी में 300 से ज्यादा मधुमक्खियां आ सकती हैं. इसके अलावा हाथों के ग्लव्स, चाकू, शहद निकालने के लिए ड्रम और रिमूविंग मशीन आदि चाहिए.
ज्यादा शहद देने वाली मधुमक्खी की प्रजातियां (Honey bee species)
आपको बता दें कि ये मधुमक्खी की प्रजातियां जैसे एपीस फ्लोरा, एपीस इंडिका या एपीस डोरसैला मधुमक्खियां ज्यादा शहद उत्पादन करती है. एपीस फ्लोरा अधिक शहद उत्पादन करने वाली शांत स्वभाव वाली मक्खी है, जिसे पालना आसान है. इतना है नहीं, एपीस फ्लोरा प्रजाति की मधुमक्खी ज्यादा अंडे देने में भी सक्षम है. जिससे कभी मधुमक्खियों की कमी नहीं पड़ेगी.
1. मधुमक्खी पालन के लाभ
पुष्परस व पराग का सदुपयोग, आय व स्वरोजगार का सृजन |
शुद्धध मधु, रायल जेली उत्पादन, मोम उत्पादन, पराग, मौनी विष आदि |
३ बगैर अतिरिक्त खाद, बीज, सिंचाई एवं शस्य प्रबन्ध के मात्र मधुमक्खी के मौन वंश को फसलों के खेतों व मेड़ों पर रखने से कामेरी मधुमक्खी की परागण प्रकिया से फसल, सब्जी एवं फलोद्यान में सवा से डेढ़ गुना उपज में बढ़ोत्तरी होती है |मधुमक्खी उत्पाद जैसे मधु, रायलजेली व पराग के सेवन से मानव स्वस्थ एवं निरोगित होता है | मधु का नियमित सेवन करने से तपेदिक, अस्थमा, कब्जियत, खून की कमी, रक्तचाप की बीमारी नहीं होती है | रायल जेली का सेवन करने से ट्यूमर नहीं होता है और स्मरण शक्ति व आयु में वृद्धि होती है | मधु मिश्रित पराग का सेवन करने से प्रास्ट्रेटाइटिस की बीमारी नहीं होती है | मौनी विष से गठिया, बताश व कैंसर की दवायें बनायी जाती हैं | बी- थिरैपी से असाध्य रोगों का निदान किया जाता है |
मधुमक्खी पालन में कम समय, कम लागत और कम ढांचागत पूंजी निवेश की जरूरत होती है,
कम उपजवाले खेत से भी शहद और मधुमक्खी के मोम का उत्पादन किया जा सकता है,
मधुमक्खियां खेती के किसी अन्य उद्यम से कोई ढांचागत प्रतिस्पर्द्धा नहीं करती हैं,
मधुमक्खी पालन का पर्यावरण पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मधुमक्खियां कई फूलवाले पौधों के परागण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इस तरह वे सूर्यमुखी और विभिन्न फलों की उत्पादन मात्रा बढ़ाने में सहायक होती हैं,
शहद एक स्वादिष्ट और पोषक खाद्य पदार्थ है। शहद एकत्र करने के पारंपरिक तरीके में मधुमक्खियों के जंगली छत्ते नष्ट कर दिये जाते हैं। इसे मधुमक्खियों को बक्सों में रख कर और घर में शहद उत्पादन कर रोका जा सकता है,
मधुमक्खी पालन किसी एक व्यक्ति या समूह द्वारा शुरू किया जा सकता है,
बाजार में शहद और मोम की भारी मांग है।
2. इतिहास
वैज्ञानिक तरीके से विधिवत मधुमक्खी पालन का काम अठारहवीं सदी के अंत में ही शुरू हुआ। इसके पूर्व जंगलों से पारंपरिक ढंग से ही शहद एकत्र किया जाता था। पूरी दुनिया में तरीका लगभग एक जैसा ही था।जिसमें धुआं करके, मधुमक्खियां भगा कर लोग मौन छत्तों को उसके स्थान से तोड़ कर फिर उसे निचोड़ कर शहद निकालते थे। जंगलों में हमारे देश में अभी भी ऐसे ही शहद निकाली जाती है। मधुमक्खी पालन का आधुनिक वैज्ञानिक तरीका पष्चिम की देन है। यह निम्न चरणों में विकसित हुआ
सन् 1789 में स्विटजरलैंड के फ्रांसिस ह्यूबर नामक व्यक्ति ने पहले-पहल लकड़ी की पेटी (मौनगृह) में मधुमक्खी पालने का प्रयास किया। इसके अंदर उसने लकड़ी के फ्रेम बनाए जो किताब के पन्नों की तरह एक-दूसरे से जुड़े थे।
सन् 1851 में अमेरिका निवासी पादरी लैंगस्ट्राथ ने पता लगाया कि मधुमक्खियां अपने छत्तों के बीच 8 मिलिमीटर की जगह छोड़ती हैं। इसी आधार पर उन्होंने एक दूसरे से मुक्त फ्रेम बनाए जिस पर मधुमक्खियां छत्ते बना सकें।
सन् 1857 में मेहरिंग ने मोमी छत्ताधार बनाया। यह मधुमक्खी मोम की बनी सीट होती है। जिस पर छत्ते की कोठरियों की नाप के उभार बने होते हैं, जिस पर मधुमक्खियां छत्ते बनाती हैं।
सन् 1865 में ऑस्ट्रिया के मेजर डी. हुरस्का ने मधु-निष्कासन यंत्र बनाया। अब इस मशीन में शहद से भरे फ्रेम डाल कर उनकी शहद निकाली जाने लगी। इससे फ्रेम में लगे छत्ते एकदम सुरक्षित रहते हैं। जिन्हें पुनः मौन पेटी में रख दिया जाता है।
सन् 1882 में कौलिन ने रानी अवरोधक जाली का निर्माण किया जिससे बगछूट और घरछूट की समस्या का समाधान हो गया। क्योंकि इसके पूर्व मधुमक्खियां, रानी मधुमक्खी सहित भागने में सफल हो जाती थीं। लेकिन अब रानी का भागना संभव नहीं था।
3. जंगली शहद की कटाई (Wild honey harvesting)
जंगली मधुमक्खी कालोनियों से शहद एकत्र करना सबसे प्राचीन मानव गतिविधियों में से एक है और अब भी अफ्रीका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अमेरिका के कुछ हिस्सों में आदिवासी समाजों द्वारा प्रचलित है। अफ्रीका में, हनीगूइड पक्षियों ने इंसानों के साथ एक पारस्परिक संबंध विकसित किया है, उन्हें शिशुओं में ले जाना और दावत में भाग लेना है। इससे पता चलता है कि मनुष्यों द्वारा शहद की कटाई महान पुरातनता का हो सकता है जंगली कालोनियों से शहद इकट्ठा करने के कुछ शुरुआती सबूत रॉक पेंटिंग्स से हैं, जो ऊपरी पेलेओलिथिक (13,000 ईसा पूर्व) के आसपास है। जंगली मधुमक्खी कालोनियों से शहद इकट्ठा करना आमतौर पर धुएं के साथ मधुमक्खियों को दबाने के द्वारा किया जाता है और उस पेड़ या चट्टानों को तोड़ने के द्वारा किया जाता है जहां कॉलोनी स्थित है, अक्सर घोंसले के भौतिक विनाश का कारण होता है।
4. आधुनिक मधुमक्खी पालन
शीर्ष-बार पित्ती (Top-bar hives)
शीर्ष पट्टी के अंगूठे का व्यापक रूप से अफ्रीका में अपनाया गया है जहां उनका उपयोग उष्णकटिबंधीय मधुमक्खी ecotypes रखने के लिए किया जाता है। उनके फायदे में हल्के वजन, अनुकूलनीय, फसल शहद के लिए आसान, और मधुमक्खियों के लिए कम तनावपूर्ण होना शामिल है। नुकसान में कंघी शामिल हैं जो नाजुक होते हैं और इन्हें आम तौर पर नहीं निकाला जा सकता है और फिर मधुमक्खियों में लौटाया जा सकता है और उन्हें अतिरिक्त शहद भंडारण के लिए आसानी से नहीं बढ़ाया जा सकता है।
शौकिया मधुमक्खियों की बढ़ती संख्या अफ्रीका में सामान्यतः पाए जाने वाले प्रकार के समान विभिन्न शीर्ष-बार छत्ते अपना रही है। शीर्ष बार पित्ती मूल रूप से 2000 वर्षों में एक इतिहास के साथ ग्रीस और वियतनाम में एक पारंपरिक मधुमक्खी पालन विधि के रूप में इस्तेमाल किया गया था। इन छिद्रों के कोई फ़्रेम नहीं है और शहद से भरे हुए कंघी निष्कर्षण के बाद वापस नहीं आती है। इस वजह से, शहद का उत्पादन एक फ्रेम के मुकाबले कम होने की संभावना है और सुपरहित हाइव जैसे लैंगस्ट्रॉथ या दादांत। शीर्ष बार छत्ते ज्यादातर लोगों द्वारा रखे जाते हैं जो शहद के उत्पादन की तुलना में अपने बगीचों में मधुमक्खियों में अधिक दिलचस्पी रखते हैं। कुछ सबसे प्रसिद्ध शीर्ष-बार हाइव डिज़ाइन हैं, केन्याई शीर्ष बार हाइव, ढलान पक्षों, तंजानिया टोप बार हाइव के साथ सीधे पक्षों के साथ, और वर्टिकल टॉप बार हाइव्स, जैसे वारे या “पीपल्स हाइव” एबी वॉर द्वारा डिजाइन किए हैं 1900 के मध्य में
5. कार्यक्षेत्र स्टैक्केबल फ़्रेम एपिस्टस (Vertical stackable frame hives)
संयुक्त राज्य अमेरिका में, लैंगस्ट्रॉथ हाइव आमतौर पर इस्तेमाल किया जाता है। लैंगस्ट्रॉथ जंगम फ्रेमों के साथ सबसे सफल शीर्ष खोले हाइव थे। कई अन्य हाइव डिज़ाइन मधुमक्खी अंतरिक्ष के सिद्धांत पर आधारित होते हैं जो पहले लैंगस्ट्रोथ द्वारा वर्णित है। लैंगस्ट्रॉथ हाइव जनवरी डीजेरज़ोन के पोलिश हाइव डिज़ाइन के वंशज हैं। यूनाइटेड किंगडम में, सबसे आम प्रकार का हाइव ब्रिटिश राष्ट्रीय है, जो हॉफमैन, ब्रिटिश मानक या मैनली फ्रेम को पकड़ सकता है। यह कुछ अन्य प्रकार के हाइव (स्मिथ, वाणिज्यिक, डब्लूबीसी, लैंगस्ट्रॉथ और रोज़) को देखने के लिए असामान्य नहीं है। दादांत और संशोधित दादांत के अंगों का व्यापक रूप से फ्रांस और इटली में उपयोग किया जाता है जहां उनके बड़े आकार का एक फायदा है। स्क्वायर दादांत की अंगूठियां – अक्सर 12 फ्रेम दादांत या भाई एडम छत्ते कहते हैं – जर्मनी के बड़े हिस्सों में और वाणिज्यिक मधुमक्खियों द्वारा यूरोप के अन्य भागों में उपयोग किया जाता है। रोज़ हाइव एक आधुनिक डिजाइन है जो कई जंगलों और अन्य जंगम फ्रेम के हिस्सों की सीमाओं को संबोधित करने का प्रयास करता है।