Sweet Potato Cultivation: शकरकंद या शकरिया के नाम मशहूर एक प्राकृतिक रूप से मीठी जड़ वाली सब्जी है। यह पूरे साल भर बाजार में देखनों को मिल जाती हैं। लेकिन यह विशेष रूप से सर्दियों के मौसम में ज्यादा होती है। आलू की तरह दिखने वाली शकरकंद की खेती ओडिशा, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल व महाराष्ट्र जैसे राज्यों में बड़े पैमाने पर की जाती है। आज भारत सहित पूरी दुनिया में शकरकंद को पसंद किया जा रहा है। भारत में उगने वाले शकरकंद का स्वाद आज पूरी दुनिया को भा रहा है। वर्तमान समय में भारत से शकरकंद का निर्यात काफी बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। इसके निर्यात में धीरे-धीरे इजाफा हो रहा है। फिलहाल शकरकंद के निर्यात की सूची में अभी भारत छठे स्थान पर बना हुआ है, लेकिन जिस प्रकार किसानों की रुची इसकी खेती को और बढ़ रही है। उसे देखते हुए ऐसे लगा रहा है कि वो दिन दूर नहीं जब हम चीन को पीछे छोड़कर निर्यातकों की लिस्ट में पहले स्थान पर होंगे। देश में इस वक्त इसकी खेती का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। देश के अलग-अलग राज्यों के किसान शकरकंद की खेती से कुछ दिनों में ही प्रति हेक्टेयर लाखों की मोटी कमाई कर रहे है। आने वाले वक्त में शकरकंद की खेती किसानों के लिए एक अच्छी आय का स्रोत बन सकती है। ट्रैक्टरगुरु के इस लेख में हम आपको शकरकंद की खेती से जुड़ी कुछ आम जानकारी देने जा रहे है। इस जानकारी से आप शकरकंद की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
शकरकंद की खेती से पैदावार एवं कमाई (Sweet Potato Cultivation)
शकरकंद आलू की प्रजाति का ही सदस्य है। इसकी खेती आलू की खेती की तरह ही की जाती है। आलू की अपेक्षा इसमें स्टार्च और मिठास अधिक मात्रा में पाई जाती है। इसकी मांग बाजारों में अधिक होती है। इस वजह से शकरकंद की खेती किसानों के लिए मुनाफेदार साबित होती है। इसकी फसल रोपाई या बुवाई के 125 से 130 दिनों में ही तैयार हो जाती है। इसके पौधों पर लगी पत्तियां पीले रंग की दिखाई देने लगें, उस दौरान इसके कंदो की खुदाई कर ली जाती है। कृषि विशेषज्ञों मानों तो किसान प्रति हेक्टेयर भूमि से लगभग 25 टन शकरकंद का उत्पादन हासिल कर सकते हैं। यदि बाजार में आप इस उपज को 10 रुपए प्रति किलो की दर से बेचेंगे तो आप आसानी से दो लाख रुपए की आय हासिल कर सकते हैं। जिसमें से लागत के 75 हजार रुपए निकाल दें, तो इसकी खेती से आप सवा लाख रुपए तक का मुनाफा आसानी से हासिल कर सकते है।
शकरकंद कैसे उगाए
शकरकंद को आमतौर पर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाता है। इसकी खेती तीनो ही मौसमो में की जा सकती है। लेकिन इसकी व्यापारिक तौर खेती गर्मियों के मौसम में करना चाहिए। क्योकि गर्मी और बारिश के मौसम में इसके पौधे अच्छे से विकास करते है। इसकी खेती के लिए तापमान 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तक उपयुक्त रहता हैं। पौधों को आरंभ में अंकुरित होने के लिए 22 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। शकरकंद की खेती के लिए भूमि उचित जल निकासी वाली होनी चाहिए। इसकी खेती में भूमि का पीएच मान 5.5 से 6.8 के बीच होना चाहिए। कठारे व पत्थरीली मिट्टी वाली भूमि का चुनाव इसकी खेती के लिए नहीं करना चाहिए।
शकरकंद की उन्नत किस्में
एस टी 14, पीली प्रजाति की शंकरकंद, लाल प्रजाति की शकरकंद, भू-कृष्ण, एस टी 13, सफेद प्रजाति की शकरकंद, श्री अरूण, भू सोना और सफेद प्रजाति की शकरकंद आदि प्रमुख है। जिसे आप मौसम और भूमि के अनुसार चुनाव कर खेती कर सकते है। इसके अलावा श्री रतना, सीओ- 1, 2, श्री वर्धिनी, श्री नंदिनी, भुवन संकर, श्री वरुण, जवाहर शकरकंद- 145, वर्षा, पूसा सुहावनी, पूसा रेड, राजेंद्र शकरकंद, अशवनी और कलमेघ भी शकरकंद की कई उन्नत किस्मे है।
कैसे करें शकरकंद की रोपाई/ बुवाई
शकरकंद की रोपाई/ बुवाई अप्रैल से जुलाई के महीने में गर्मी और बारिश के मौसम में कि जाती हैं। तथा इसकी खेती के लिए नर्सरी जनवरी से फरवरी महीने में तैयार किया जाता है। इसकी बुवाई/ रोपाई के लिए 30 से 35 हजार कटिंग कर हुई बेल या 300 से 320 किलो कंदों की प्रति हेक्टेयर आवश्यकता होती है। इसकी अच्छी पैदावार व बढि़या गुणवता की शकरकंद प्राप्त करने के लिए इसके कंदों/ बेलों की बुवाई डोलियाँ पर ही करनी चाहिए। शंकरकंद की बुवाई करते समय क्यारियों के बीच 30 से 45 सेंटीमीटर की दूरी रखे। तथा हर पौधे के बीच 1 फीट की दूरी रखते हुए 15 से 20 सेंटीमीटर की गहराई में ही लगाए। कंद या पौधों को खेत में लगाने से पहले बाविस्टिन या कैप्टन के घोल से उपचारित कर लें।
शकरकंद की खेती में खाद, उवर्रक एवं सिंचाई
शकरकंद की अच्छी उपज के लिए फसल को समय-समय पर उचित पोषण के लिए खाद व उर्वरक का विशेष ध्यान देने की जरूरत है। खेती तैयार करते समय जैविक खाद के तौर पर सड़े हुए गोबर की 20 से 25 टन खाद का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके अलावा 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 से 50 किलोग्राम फास्फोरस और 25 से 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर देनी चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा दो बार में खड़ी फसल में देनी चाहिए। शकरकंद जमीन के अंदर वाली फसल है, एवं इनकी बुवाई मेंड़ पर की जाती है। इसकी कारण शकरकंद को हल्की सिंचाई की जरूरत होती है। शकरकंद को तीन से चार सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। बारिश के मौसम में इसे सिंचाई की ज्यादा आवश्यकता नहीं होती है।
खरपतवार नियंत्रण
शकरकंद की बुवाई के 15 से 20 दिन बाद खेत को खरपतवार मुक्त करने के लिए प्राकृतिक तरीके से निराई-गुडाई करें। अगर खेत में ज्यादा खरपतवार हैं एवं इसकी खेती बड़े स्तर पर की गई है, तो पेंडीमेथलिन 3 लीटर की मात्रा को 800 से 900 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर के खेत में छिड़काव करे।