CINNAMON FARMING : आप जानते है दालचीनी एक छोटा सदाबहार पेड़ है, जो कि 10–15 मी (32.8–49.2 फीट) ऊंचा होता है। यह श्रीलंका एवं दक्षिण भारत में बहुतायत में मिलता है। इसकी छाल मसाले की तरह प्रयोग होती है। इसमें एक अलग ही सुगन्ध होती है, जो कि इसे गरम मसालों की श्रेणी में रखती है। दालचीनी स्वाभाविक रूप से पश्चिमी घाट के जंगलो में देखा गया हैं और व्यावसायिक रूप से केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में इसकी खेती की जाती हैं।
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Seed Specification
बुवाई का तरीका
इसका प्रसार बीजों द्वारा, कलमों और हवा परतों के मध्यम से किया जा रहा है।
नर्सरी बनाने का समय
भारत के पश्चिमी घाट में दालचीनी के फूल और फल निकलने का समय जनवरी से अगस्त का होता है। फलों को पेड़ से इक्कठा कर लिया जाता है इसके बाद बीजों को निकाला जाता है। बीजों को साफ़ करके बोया जाता है। इन बीजों को पोलीथीन में में बोया जाता है। पोलीथीन में रेत मिटटी और गोबर के मिश्रण को भर दिया जाता है। इसके बाद ह्क्ली सी सिंचाई करके बीजों को बोया जाता है। इसमें नियमित रूप से पानी दिया जाना चाहिए। दालचीनी के बीज 15 से 20 दिन के अंदर अंकुरित होने लगते है। इसके पोलिबैग को छाया में रखना चाहिए।
पौधरोपण का तरीका
पौध को बोने से पहले गड्डे में सड़ी हुई गोबर की खाद और मिटटी के मिश्रण को भर दें। इसके बाद पौध लगायें। एक गड्डे में लगभग 4 या 5 अंकुरित पौध लगायें। जब तक पौध भूमि में पूरी तरह से जम नही जाते तब तक उन्हें छाया में ही रखे।
दुरी
दालचीनी के पौध लगाने के लिए 50 50 50 के आकार का गड्डा खोद लें। एक गड्डे से दुसरे गड्डे के बीच की दुरी कम से कम 3 मीटर की होनी चाहिए।
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Land Preparation & Soil Health
अनुकूल जलवायु
दालचीनी एक सशक्त पौधा है और विभिन्न प्रकार की मिट्टी और जलवायु में पैदा होता है। दालचीनी एक वर्षा आधारित फसल है। इसके लिए कम से कम 200 से 250 सेंटीमीटर की वर्षा का होना अति आवश्यक है।
भूमि का चयन
दालचीनी पौधे के लिए लैटेराइट, रेतीली तथा बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त है।
खेत की तैयारी
दालचीनी की खेती के लिए पौध रोपण से पहले खेत की अच्छी तरह जुताई करना चाहिए तथा उसके बाद गड्ढो की खुदाई करना चाहिए। तथा खेत को खरपतवार मुक्त करना चाहिए।
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Crop Spray & Fertilizer Specification
खाद एवं रासायनिक उर्वरक
इस फसल की अच्छी बढ़वार के लिए गड्ढो में वर्मीकम्पोस्ट या सड़ी हुई गोबर की खाद पौध रोपण के समय देना चाहिए। और रासायनिक उर्वरक में पहले साल में 20 से 25 ग्राम यूरिया 20 से 25 ग्राम फास्फोरस और 50 ग्राम पोटाश की मात्रा का प्रयोग करना चाहिए। इन उर्वरक की मात्रा को मई – जून और सितम्बर – अक्तूबर के महीने में दो बराबर मात्रा में बाँटकर प्रयोग करना चाहिए।
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Weeding & Irrigation
खरपतवार नियंत्रण
दालचीनी की रोपाई के बाद मिट्टी के आस – पास हल्की निराई करनी चाहिए। तथा आवश्यकतानुसार निराई करना चाहिए।
सिंचाई
दालचीनी एक वर्षा आधारित फसल है। इसके लिए कम से कम 200 से 250 सेंटीमीटर की वर्षा का होना अति आवश्यक है। दालचीनी की पहले २ या 3 साल में सप्ताह में दो बार सिंचाई करनी चाहिए। गर्मियों के मौसम में इसकी फसल में सिंचाई समय – समय पर करनी चाहिए| इससे भूमि में नमी बनी रहती है। क्योकि भूमि में नमी का स्तर पौधे की विकास पर आधारित होती है।
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Harvesting & Storage
कटाई
दालचीनी के पौधे की कटाई जब पौधे 12 से 15 मीटर तक ऊंचे हो जाते है तब इसकी कटाई का सही समय आता है। कटाई के काम के लिए सितम्बर से नवम्बर का महिना उचित होता है। थोड़ी मोटी और भूरे रंग के दालचीनी की कटाई करनी चाहिए। इसकी कटाई के लिए तेज़ धार वाले चाकू का उपयोग करना चाहिए। इसकी मदद से पेड़ में से छाल को आसानी से अलग कर लिया जाता है।
भण्डारण
कटाई के बाद इसे आगे पोस्ट हार्वेस्ट के लिए पैक हॉउस में भेजा जाता है।
दालचीनी के फायदे :-
- यह न केवल स्वाद को बढाने के काम आता है बल्कि इससे कई सेहतबर्धक उत्पादों को बनाया जाता है। इसका प्रयोग न केवल भारत मे बल्कि विदेशों में भी मसालेदार कैंडी बनाने के लिए होता है। दालचीनी का पूरा पौधा ही औषधिय गुणों से भरा हुआ है। दालचीनी पत्ती के तेल के लिए मच्छर के लार्वा को मारने में बहुत प्रभावी होना पाया गया है।
- शहद और दालचीनी के मिश्रण में मानव शरीर के अनेकों रोगों का निवारण करने की अद्भुत शक्ति है। दुनियां के करीब सभी देशों में शहद पैदा होता है।
- आज कल बुजुर्गों यहाँ तक कि बच्चों ने दर्द एक आम बात बन चुकी है जिन्हें जोड़ों के दर्द की समस्या हो, उन्हें हर दिन सुबह आधा चम्मच दालचीनी पाउडर को एक बड़े चम्मच शहद में मिला कर सेवन करने से बहुत जल्दी फायदा होता है।
- दांत हमारे आकर्षण का मुख्य केंद्र होती है किंतु हम अपने खान पान पर ध्यान नही दे पाते है जिससे दांतों में कीड़े लग जाते है। दांत में कीड़ा लगने, या दर्द होने पर दालचीनी के तिेल में भीगी रूई का फाहा लगाने से आराम मिलता है।
- बुजुर्गों को दालचीनी के तेल की कुछ बूंदें कान में डालने से कम सुनाई देने की समस्या से छुटकारा मिलता है।
- दालचीनी से मुँह के बदबू को भी दूर किया जा सकता है और इससे मसूड़े भी मजबुत होते है।
- कभी-कभी कंधे में दर्द होता है। दालचीनी का प्रयोग करने से कंधे का दर्द ठीक हो जाता है।