Ginger Farming Techniques : अदरक (ज़िन्जिबर ओफिसिनल) (समूह-जिन्जिबेरेसी) एक झाड़ीनुमा बहुवर्षीय पौधा है, जिसक प्रकन्द मसाले के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं । विश्व के कुल उत्पादन का 60% उत्पादन भारत में होता हैं । भारत में इस फसल की सबसे ज्यादा खेती केरल में की जाती हैं जहाँ भारत के कुल उत्पादन का 70% भाग यहाँ से उत्पादित किया जाता हैं इसके अतिरिक्त हिमाचलप्रदेश, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा, राजस्थान, मध्यप्रदेश, आदि प्रांतो में भी इसकी खेती की जाती हैं । भारत की अन्य भाषाओं में अदरक को विभिन्न नामो से जाना जाता है जैसे- आदू (गुजराती), अले (मराठी), आदा (बंगाली), इल्लाम (तमिल), आल्लायु (तेलगू), अल्ला (कन्नड.) तथा अदरक (हिन्दी, पंजाबी) आदि।
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Seed Specification
बुवाई का समय :-
अदरक की बुवाई मई-जून के पहले सप्ताह में की जाती है।
फासला :-
पंक्तियों की आपस में बीच की दूरी 20-25 से.मीटर रखना चाहिए। बीज प्रकन्द के टुकड़ों को हल्के गढ्डे खोदकर उसमें रखकर तत्पश्चात् खाद (एफ वाई एम) तथा मिट्टी डालकर समान्तर करना चाहिए।
बीज की गहराई :-
बीज की गहराई 3-4 सैं.मी. के करीब होनी चाहिए।
बिजाई का ढंग :-
अदरक की बिजाई सीधे ढंग से और पनीरी लगाकर की जा सकती है।
बीज की मात्रा :-
बिजाई के लिए ताजे और बीमार रहित गांठों का प्रयोग करें। अदरक की खेती के लिए 15 से 20 क्विंटल प्रकन्द प्रति हेक्टेयर बीज दर उपयुक्त रहती हैं।
बीज का उपचार :-
बीज प्रकन्द को 30 मिनट तक 0.3%(3ग्राम/लीटर पानी) मैनकोजेब से उपचारित करने के पश्चात 3-4 घंटे छायादार जगह में सुखाकर 20-25 से.मीटर की दूरी पर बोते हैं ।
बिजाई के बाद फसल को 50 क्विंटल प्रति एकड़ हरे पत्तों से ढक दें। प्रत्येक खाद डालने के बाद 20 क्विंटल प्रति एकड़ हरे पत्तों से फसल को दोबारा ढकें।
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Land Preparation & Soil Health
भूमि :-
अदरक की खेती बलुई दोमट जिसमें अधिक मात्रा में जीवाशं या कार्बनिक पदार्थ की मात्रा हो वो भूमि सबसे ज्यादा उपयुक्त रहती है| मिटटी का पी एच मान 5.6 ये 6.5 और अच्छे जल निकास वाली भूमि सबसे अच्छी, अदरक की फसल से अधिक उपज के लिऐ रहती हैं| उस खेत में अदरक की फसल ना उगाएं जहां पिछली बार अदरक की फसल उगाई गई हो। हर साल एक ही ज़मीन पर अदरक की फसल ना लगाएं।
जलवायु :-
अदरक की खेती गर्म और नमीयुक्त जलवायु में अच्छी तरह की जा सकती है। इसके अलावा फसल के विकास के समय 50 से 60 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा हो साथ ही भूमि भी इस तरह की ही होनी चाहिए जहां पर पानी ज्यादा देर तक ना ठहर सकें और पर्याप्त छाया भी बनी रहे।
खेत की तैयारी :-
अदरक की खेती के लिए मानसून से पहले खेत को चार या पांच बार अच्छी तरह जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी करके समतल कर लेना चाहिए। अदरक की बुवाई के लिए 15 सैं.मी. ऊंचे और 1 मीटर चौड़े बैड बनाएं। दो बैडों के बीच 50 सैं.मी. का फासला रखें। उत्तम जल निकास की व्यवस्था होनी चाहिए।
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Crop Spray & fertilizer Specification
खाद एवं रासायनिक उर्वरक :-
अदरक एक लम्बी अवधि की फसल हैं। जिसे अधिक पोषक तत्चों की आवश्यकता होती है। उर्वरकों का उपयोग मिट्टी परीक्षण के बाद करना चाहिए। अदरक की बुवाई से पूर्व खेत तैयार करते समय अच्छी सड़ी हुई गोबर की 10-15 टन खाद/एकड़ की दर से मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देनी चाहिए। और रासायनिक उर्वरक में नाइट्रोजन 25 किलो (55 किलो यूरिया), फासफोरस 10 किलो (60 किलो सिंगल सुपर फासफेट) और पोटाश 10 किलो (16 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश) की मात्रा प्रति एकड़ में प्रयोग करें। पोटाश और फासफोरस की पूरी मात्रा बिजाई के समय डालें। नाइट्रोजन की मात्रा को दो बराबर भागों में बांटें। पहला हिस्सा बिजाई के 75 दिन बाद और बाकी हिस्सा बिजाई के 3 महीने बाद डालें।
हानिकारक कीट एवं रोग और उनके रोकथाम :-
हानिकारक कीट
अदरक का घुन और हल्दी कन्द शल्क – इसकी रोकथाम के लिए क्लोरोपाइरिफॉस (5%)धूल 25किग्रा/हे. को बुवाई के समय खेत में डाले।
नाइजर शल्क – इसकी रोकथाम के लिए क्विनालफॉस धूल से 20 मिनट तक कन्दों को बुवाई और भण्डारन के पहले उपचारित करे।
हानिकारक कीट
अदरक का घुन और हल्दी कन्द शल्क – इसकी रोकथाम के लिए क्लोरोपाइरिफॉस (5%)धूल 25किग्रा/हे. को बुवाई के समय खेत में डाले।
नाइजर शल्क – इसकी रोकथाम के लिए क्विनालफॉस धूल से 20 मिनट तक कन्दों को बुवाई और भण्डारन के पहले उपचारित करे।
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Weeding & Irrigation
खरपतवार नियंत्रण :-
अदरक प्रकन्दीं का अंकुरण 15 से 25 दिन में हो जाता है अतः आवश्यकतानुसार खेत में निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। जड़ों के विकास के लिए जड़ों में मिट्टी लगाएं। बिजाई के 50-60 दिनों के बाद पहली बार जड़ों में मिट्टी लगाएं और उसके 40 दिन बाद दोबारा मिट्टी लगाएं।
सिंचाई :-
अदरक की फसल की सिंचाई वर्षा की तीव्रता और आवर्ती के आधार पर करें। सिंचाई व जल प्रबंधन अदरक की खेती में बराबर नमी का बना रहना काफी ज्यादा जरूरी है। इसीलिए इसकी खेती में पहली सिंचाई को बुआई के तुंरत बाद कर लेना चाहिए। अदरक की खेती के लिए सिंचाई की बेहतर तकनीकों में टपक पद्धति या ड्रिप एरिगेशन का प्रयोग किया जाए तो इसके काफी अच्छे परिणाम सामने आ सकते है
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Harvesting & Storage
खुदाई :-
बुआई के आठ महीने बाद जब पत्ते पीले रंग के हो जाये और धीरे-धीरे सूखने लगे तब फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। पौधों को सावधानीपूर्वक फावड़े या कुदाल की सहायता से उखड़ कर प्रकंदों को जड़ और मिट्टी से अलग कर लेते हैं । अदरक को सब्जी के रूप में उपयोग करने के लिए उसे छठवें महीने में ही खुदाई करके निकाल लेना चाहिए । प्रकन्दों को अच्छी तरह धो कर सूर्य के प्रकाश में कम से कम एक दिन सुखा कर उपयोग करना चाहिए ।
भण्डारण :-
अच्छा बीज करने के लिए प्रकन्द को छायादार जगहों पर बने गढ़ड़ों में भण्डारण करते हैं। जब फसल 6-8 महीने की हरी अवस्था में हो तो खेत में स्वस्थ्य पौधों का चयन कर लेते हैं। बीज प्रकन्द को 0.075% क्विनाल्फोस तथा 0.3% मैन्कोजेब के घोल में 30 मिनट उपचार करके छायादार जगह में सुखा लेते हैं। बीज प्रकंदों को सुविधानुसार गढ्डे बनाकर भंडारण करते हैं। इन गढ्डे की दीवारे को गोबर से लेप देते हैं। गढ्डों में एक परत प्रकन्द फिर 2 से.मीटर रेत /बुरादा की परत में रखते हैं। पर्याप्त वायु मिलने के लिए गढ्डों के अन्दर पर्याप्त जगह छोड़ देते हैं। इन गढ्डों को लकड़ी के तख्ते से ढक देते हैं। इन तख्तों को हवादार बनाने के लिए इनमें एक या दो छेद करते हैं।बीज प्रकन्द को लगभग 21 दिनों के अन्तराल पर देखना चाहिए मुझाये या रोग बाधित प्रकन्द को निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए।