Mangosteen cultivation In India : जानें, क्या है मैंगोस्टीन, इसकी खेती से कैसे मिलेगा ज्यादा मुनाफा

Mangosteen cultivation In India

Mangosteen cultivation In India : भारत में किसान अब पारंपरिक खेती धान, गेहूं, मक्का समेत अन्य फसलों की बुआई करने के साथ-साथ अपनी आय बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार की बागवानी फसलों की खेती भी कर रहे हैं। ऐसे में किसान एक ऐसे ही बागवानी फसल मैंगोस्टीन फल की खेती करके लाखों रुपये की कमाई कर सकते हैं। मैंगोस्टीन के फल में एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटी-बैक्टीरियल एवं एंटी-फंगल गुण होते हैं। वैज्ञानिक स्तन कैंसर, लीवर कैंसर और ल्यूकेमिया के इलाज के लिए इसका उपयोग भी कर रहे हैं। मैंगोस्टीन का साइंटिफिक नाम गार्सिनिया मैंगोस्टाना है। यह उष्णकटिबंधीय फलदार पेड़ है। इसके पेड़ की खेती थाईलैंड, वियतनाम, बर्मा, फिलीपींस और दक्षिण-पश्चिम भारत में प्रमुख रुप से की जाती है। भारत के किसान भी इसकी खेती करके अच्छा लाभ कमा सकते हैं। किसान भाईयों ट्रैक्टर गुरु की इस पोस्ट के माध्यम से हम आपके साथ मैंगोस्टीन फल की खेती से जुड़ी सभी जानकारी साझा करेंगे।

  • मैंगोस्टीन के औषधीय गुण

मैंगोस्टीन का फल विभिन्न प्रकार के पोषक तत्वों से भरा होता है। इसके फल में एंटी ऑक्सीडेंट, एंटी बैक्टीरियल, एंटी फंगल गुण होते हैं। इसके फल का स्वाद थोड़ा खट्टा व मीठा होता है, इसलिए बहुत से लोग इसे फलों की रानी भी कहते हैं। मैंगोस्टीन में बहुत पोषक तत्व व खनिज पाये जाते हैं जो कई बीमारियों से हमारे शरीर का बचाव करने में सहायक होता है। हमारे देश में देशी भाषा में मैंगोस्टीन फल को कई नामों से जाना जाता है। जैसे गुजरात में कोकम, कन्नड़ में ‘मुरुगला हन्नू’ आदि। इसके फल का उपयोग रक्तचाप को सामान्य करने के लिए किया जाता है। इसके अतिरिक्त कैंसर से बचाव, वजन को नियंत्रित, मासिक धर्म से जुड़ी परेशानियों को कम करने, पाचन समस्या को दूर करने व रक्त शर्करा को नियंत्रित करने में यह लाभदायक होता हैं। इसके फल में फाइबर व कार्बोहाइड्रेड की अधिक मात्रा होती है। विटामिन में ए, सी के अलावा आयरन, पोटेशियम, कैल्शियम आदि होता है। इसी कारण लोग इसके फल को खाना पसंद करते हैं। लोगों की पसंद के कारण ही मैंगोस्टीन के फल बाजार में अच्छे भाव पर बिक जाता है।

  • मैंगोस्टीन की खेती करने के लिए उपयुक्त जलवायु

मैंगोस्टीन की खेती करने के लिए गर्म, नमी युक्त और भूमध्यरेखीय जलवायु जरूरी होती है। इसके पौधे को न अधिक पानी, न अधिक गर्मी और न ही अधिक सर्दी की जरूरत होती है। इसकी खेती करने के लिए 5 से 35 डिग्री तक का तापमान उपयुक्त रहता है। इसके फल के उत्पादन के लिए अधिक बारिश की जरूरत नहीं होती है। लेकिन अगर सूखे की स्थिति रहती है तो इसकी फसल का उत्पादन प्रभावित हो सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार मैंगोस्टीन के पौधों के लिए सीधे सूरज की रोशनी की जरूरत नहीं होती है। इसके पौधों को हर दिन औसतन 13 घंटे तक की धूप की जरूरत होती है।

  • मैंगोस्टीन की खेती करने के लिए उपयुक्त मिट्टी

मैंगोस्टीन के पौधों के समुचित विकास करने के लिए सही मिट्टी का चयन करना बेहद जरूरी है। रेतीली, दोमट मिट्टी इसकी खेती करने के लिए उपयुक्त होती है। इसकी खेती करते समय मिट्टी में कार्बनिक पदार्थां का अधिक होना जरूरी होता है। इसके फल का अच्छा उपज प्राप्त करने के लिए मिट्टी का पीएच मान 6 से 8 के बीच का होना चाहिए।

  • मैंगोस्टीन की खेती करने के लिए खेत की तैयारी कैसे करें

मैंगोस्टीन की खेती करने के लिए सबसे पहले खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेषों को खत्म करना होता है। इसके बाद खेत की मिट्टी पलटने वाले हल या कल्टीवेटर की मदद से 2 से 3 बार गहरी जुताई की जाती है। उसके बाद खेत की मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिए खेत की 1 से 2 बार रोटावेटर की मदद से जुताई की जाती है। इसके बाद खेत में पाटा लगाकर खेत को समतल कर दें। ताकि बारिश के मौसम में खेत में जल भराव की समस्या उत्पन्न ना हो।
मैंगोस्टीन के पौधों को खेत में लगाने से पहले खेत में गड्ढे तैयार करने होते हैं। गड्ढे बनाने के लिए समतल भूमि में एक मीटर चौड़ा और दो फुट गहरा गड्ढा खेत में तैयार किया जाता है। इन गड्ढों को पंक्ति में तैयार करते है, जिसमें एक पंक्ति से दूसरी पंक्ति के बीच 5 से 6 मीटर के बीच की दूरी रखी जाती है।
इसके बाद तैयार गड्ढों में जैविक और रासायनिक खाद की उचित मात्रा को मिट्टी में मिलाकर भर दिया जाता है। गड्ढों में खाद भरने के बाद गड्ढों की गहरी सिंचाई कर दी जाती है, फिर उन्हें पुलाव करने के लिए ढक देते हैं। इन गड्ढों की तैयारी मैंगोस्टीन के पौधों की रोपाई से एक माह पहले अवश्य कर लेना चाहिए।

  • मैंगोस्टीन की बुवाई कैसे करें

बीजों के माध्यम मैंगोस्टीन के पौधों की बुवाई थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि इसके असली बीज आसानी से नहीं मिलते इसलिए नर्सरी से ही इसके पौधा खरीदकर लगाना चाहिए। इसके नए पेड़ों को 12 इंच की लंबाई तक पहुंचने में कम से कम दो साल लग सकते हैं। मैंगोस्टीन के पेड़ की रोपाई के बाद इन पेड़ों को फल देने में 7-9 साल तक का समय लग सकता है। हालांकि भारत में इसके पेड़ से फलों प्राप्त करने के दो मौसम होते हैं। इसका पेड़ जुलाई से अक्टूबर तक फल देता है और दूसरी बार अप्रैल-जून के महीनों में फल देता है।

  • मैंगोस्टीन की खेती करने के लिए उर्वरक प्रबंधन

मैंगोस्टीन के खेत में सामान्य फसलों की तरह ही खाद की जरूरत होती है। पौधे की रोपाई करते समय तैयार गड्ढों में मिट्टी के साथ 15 किलो सड़ी हुई गोबर की खाद और 100 ग्राम एनपीके खाद की मात्रा को अच्छे से मिलाकर गड्ढों में भर दिया जाता है। खाद की इस मात्रा को पौधे की दो वर्षों की आयु तक देना होता है तथा पौधे के विकास के साथ ही उर्वरक की मात्रा को बढ़ा देना चाहिए। जब पौधा 15 वर्ष का पूर्ण विकसित हो जाए तो 30 किलो जैविक खाद,3 किलो सुपर फास्फेट खाद, 2 किलो यूरिया और 2 किलो पोटाश की मात्रा को वर्ष में एक से दो बार देना आवश्यक होता है।

  • मैंगोस्टीन की खेती में पौधों की सिंचाई

मैंगोस्टीन के पौधों को अधिक पानी की जरूरत नहीं होती है। इसका पूर्ण रूप से विकसित पौधों को एक साल में 7 से 8 बार सिंचाई करना पर्याप्त होता है। इसके पेड़ को पानी देने के लिए खेत में थाला बनाया जाता है। इसके थाले को पौधे के तने के चारों ओर दो फ़ीट की दूरी पर गोल घेरा करके बनाया जाता है। इस घेरा की चौड़ाई दो फ़ीट तक की होनी चाहिए। सर्दियों के सीजन में 10 से 15 दिन में इसके पेड़ो की सिंचाई की जाती है तथा गर्मी के सीजन में 5 से 6 दिन में एक बार पानी देना चाहिए। यदि आपने बलुई दोमट मिट्टी में पौधों की रोपाई की है, तो इसके पौधे को अधिक पानी की जरूरत होती है। इसलिए गर्मियों में पौधों को सप्ताह में दो बार पानी देना पर्याप्त होता है। बारिश के मौसम में समय से वर्षा ना होने पर ही पौधों में सिंचाई करना चाहिए।

  • मैंगोस्टीन के पौधों में खरपतवार नियंत्रण कैसे करें

मैंगोस्टीन के पौधों में खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक तरीके का इस्तेमाल करना चाहिए। मैंगोस्टीन के पौधे की रोपाई के तक़रीबन 20 से 25 दिन बाद खेत में हल्की निराई-गुड़ाई अवश्य कर दें। पूरे तरीके से विकसित पौधों को प्रति वर्ष केवल 3 से 4 गुड़ाई की जरूरत होती है।

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