Methi Farming: जानें कसूरी मेथी की उन्नत खेती का तरीका और कमाएँ लाखों रुपए

Methi Farming : किसानों को कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाओं से लाभान्वित किया जा रहा है। ऐसे में किसानों का रुझान खेती के प्रति बढ़ने लगा है। अब किसान खेती में पारंपरिक खेती को छोड़ नगदी फसल की खेती पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। नगदी फसल की खेती में किसान औषधीय फसलों को ज्यादा अपना रहे है। क्योंकि इन फसलों की देश व विदेश के बाजारों में मांग निरंतर रहती है। इस कड़ी में मसालों के औषधीय गुणों वाली कसूरी मेथी की फसल भी किसानों के लिए काफी मुनाफेदार और कैश फसल साबित हो रही है। दरअसल किसी भी कैश फसल से अच्छा मुनाफा कमाने के लिए उन्नत खेती के साथ ही फसल की सही देखभाल भी करना बहुत जरूरी होता है। ऐसे में अगर कसूरी मेथी की फसल से अधिक लाभ अर्जित करना है, तो किसान भाई को इस पर लगातार देखभाल करते हुए रोगों से बचाना होगा। इसके लिए किसानों को इसमें लगने वाले रोगों के बारे में पता होना चाहिए और साथ ही इन रोगों के उपचार के लिए सही तकनीक का भी पूरा ज्ञान होना चाहिए। ट्रैक्टरगुरु के इस लेख में हम आपको कसूरी मेथी की खेती एवं इसकी फसल में होने वाले रोग तथा रोग के उपचार व प्रबंधन की पूरी जानकारी देने जा रहे है। ताकि आप अपनी फसल को प्रभावित होने से बचा पाए।

कसूरी मेथी की खेती कैसे करें?

मेथी एक पत्तेदार वाली औषधीय फसल है। मेथी के सुखे पत्तों को ही कसूरी मेथी कहते है। इसकी गिनती मसालेदार फसलों में होती है। इसका उपयोग सब्जी, अचार और लड्डू आदि बनाने में किया जाता है। इसके स्वाद में कड़वापन होता है। लेकिन यह औषधीय गुणों से भरपूर होती है। इसके सेवन करने से जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है। उच्च रक्तचाप (हाई वीपी), डायबिटीज व अपच में इसका उपयोग बहुत ही लाभकारी है। हरी मेथी ब्लड शुगर कम करने में मदद करती है। हरी मेथी हो या दाना मेथी। दोनों प्रकार से इसका सेवन शरीर को स्वस्थ रखने में मददगार है। इसकी खुशबू काफी अच्छी होती है। अगर आप इसकी खेती वैज्ञानिक तकनीक से करें, तो इसकी खेती से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

कसूरी मेथी की खेती की बुवाई का समय

कूसरी मेथी की खेती उत्तरी भारत सहित पंजाब, राजस्थान, दिल्ली में सफलतापूर्वक होती है। राजस्थान और गुजरात सर्वाधिक मेथी उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्य हैं। एक राजथान ही 80 फीसदी से ज्यादा मेथी का उत्पादन करता है। इसकी खेती रबी मौसम में की जाती है, लेकिन दक्षिण भारत में इसकी खेती बारिश के मौसम में की जाती है। इसकी खेत की बुवाई सितंबर से मार्च तक और पहाड़ी इलाकों में इसे जुलाई से लेकर अगस्त तक होती है। यदि इसकी बुवाई हरी पत्तियों के लिए करते है, तो 10 से 12 दिनों के अंतराल में करनी चाहिए और दानों के लिए इसकी बुवाई नवंबर के अंत तक कर लेनी चाहिए।

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कसूरी मेथी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु एवं मिट्टी

उन क्षेत्रों में कसूरी मेथी की खेती सबसे उपयुक्त जहां की जलवायु ठंडी होती है। क्योंकि यह सर्दियों में पड़ने वाले पाला को भी सहन कर सकती है। इसकी खेती करने के लिए चिकनी मट्टी को उपयुक्त माना गया है। इसकी खेती को जलभराव वाली भूमि में नहीं करना चाहिए। अधिक बारिश वाले इलाकों में इसकी खेती नहीं की जा सकती है। इसकी खेती से अच्छी पैदावार के लिए भूमि का पीएचमान 6.5 से 7 के बीच होनी चाहिए।

कसूरी मेथी फसल की देख भाल कैसे करें ?

कसूरी मेथी की अच्छी फसल लेने के लिए इसकी उचित देखभाल करनी होती है। इसकी फसल को रोगों से बचाना होता है। इसके लिए फसली चक्र को अपनाना चाहिए, ताकि इसकी जड़ों में पनपने वाले कीड़ों से निजात मिल सके। मेथी में छाछया रोग लेवीलूला तोरिका एवं एरीसाइफ पोलीगोनी नामक कवकों से फैलता है। इस रोग रोकथाम एवं उपाय के लिए सल्फर 20-25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से भुरवाक करें। वहीं, घुलनशील सल्फर 0.2 प्रतिशत घोल या 0.1 प्रतिशत केराथेन 0.05 प्रतिशत केलेक्सीन (500-600 लीटर पानी) में घोल बनाकर छिड़काव करें।

तुलासिता रोग : तुलासिता रोग मेथी में फरवरी और मार्च में आता है। इस रोग के फैलने में पेरोनोस्पोरा ट्राइगोनेला नामक कवक्ण भूमिका रहती है। इसके रोकथाम के उपाय रू इस रोग को रोकने के लिए 0.2 प्रतिशत, डाइफोलेटान या क्यूप्रामार या ब्लाइटॉक्स 50 का छिड़काव करना चाहिए।

जड़ विगलन रोग : इसे राइजोक्टिनिया रूट रोट कहते हैं। इसके मुख्य लक्षण फसल की पत्तियां पीली होकर सूख जाती है। इससे पैदावार में बहुत कमी आती है। इसके रोकथाम के लिए गर्मी के दौरान गहरी जुताई करें, जिससे नीमेटोड जैसे जीवाणुओं से मुक्ति मिल सके। वहीं, फसली चक्र जरूर इस्तेमाल करे। एवं इसके बीजों को बोने से पहले 2-3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज को बाविस्टिन या थाइरम या डाइथेन एम 45 से उपचारित करें।

खाद एवं उर्वरक की मात्रा का प्रयोग

कसूरी मेथी की खेती से अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी परीक्षण रिपोर्ट के अनुसार खाद एवं उर्वरक की मात्रा का प्रयोग करना चाहिए। कृषि विशेषज्ञों की माने, तो इसकी खेती में बुआई से पूर्व खेत में जुताई के समय 150-250 क्विंटल गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से अच्छी तरह मिलाकर खेत को तैयार करना चाहिए। यदि खेत में दीमक की समस्या है, तो खेत में क्विनालफास (1.5 फीसदी) या मिथाइल पैराथियान (2 फीसदी चूर्ण) 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए। वहीं, रासायनिक खाद के रूप में नत्रजन, फास्फोरस और पोटाश को 1ः2ः1 में प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा बुवाई के समय और आधी हर कटाई के बाद इस्तेमाल करना चाहिए।

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कूसरी मेथी की खेती से पैदावार और लाभ

कसूरी मेथी की फसल की कटाई एक बार लिया जाए, तो इसकी खेती से बीज की अच्छी पैदावार मिलती है। यह पैदावार करीब 5 से 6 क्विटल प्रति हेक्टेयर के आस पास होती है। इसके फसल की कटाई इसके किस्म पर निर्भर करती है। अक्टूबर में बोई फसल से पत्तियों की 5 और नवम्बर में बोई फसल से पत्तियों की 4 कटाई लेनी चाहिए। इसके पत्तियों की पहली कटाई बुआई के 25 से 30 दिन के पश्चात करनी चाहिए। इसके बाद हर 15 दिन के अन्तराल पर कटाई करते रहें। कसूरी मेथी की पत्तियों की उपज कटाई की संख्या पर निर्भर करती है। यदि इसकी फसल से हरी पत्तियों की 4 से 5 कटाई ले, तो हरी पत्तियों की उपज 70 से 75 क्विटल प्रति हैक्टेयर होती है। कटाई करने के बाद इसकी पत्तियों को हल्की धूप में सुखा 100 रुपए प्रति किलोग्राम तक बाजार में बेचा जा सकता है। यदि उचित प्रबंधन एवं वैज्ञानिक तरीके से इसकी खेती की जाए, तो प्रति हेक्टेयर करीब 2 से 3 लाख रुपए तक आसानी से कमाया जा सकता है।

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