Watermelon Farming: पूरे देश में रबी फसल की कटाई का काम चल रहा है। मार्च तक कटाई का काम पूरा कर लिया जाएगा और इसके बाद खेत खाली हो जाएंगे। ऐसे में किसान तरबूज की खेती करकेे अच्छा-खासा मुनाफा कमा सकते हैं। तरबूज की खेती की खास बात ये हैं इसे कम पानी, कम खाद और कम लागत में उगाया जा सकता है। वहीं बाजार में इसकी मांग होने से इसके भाव अच्छे मिलते हैं। किसान रबी और खरीफ के बीच के समय में अपने खेत में तरबूज की खेती करके करीब सवा 3 लाख रुपए तक कमाई कर सकते हैं, बेशर्त हैं कि तरबूज की उन्नत किस्मों की बुवाई करें और खेती का सही तरीका अपनाएं। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से आपको तरबूज की खेती की जानकारी दे रहे हैं।
देश में कहां-कहां होती है तरबूज की खेती (Tarbooj Ki Kheti)
तरबूज की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान राज्य में की जाती है। इसकी खेती गंगा, यमुना व नदियों के खाली स्थानों में क्यारियां बनाकर की जाती है।
तरबूज की खेती कब करें / तरबूज की खेती का उचित समय
वैसे तो तरबूज की खेती दिसंबर से लेकर मार्च तक की जा सकती है। लेकिन तरबूज की बुवाई का उचित समय मध्य फरवरी माना जाता है। वहीं पहाड़ी क्षेत्रों में मार्च-अप्रैल के महीनों में इसकी खेती की जाती है।
तरबूज की खेती के लिए जलवायु और मिट्टी (Watermelon Cultivation)
तरबूजे की खेती के लिए अधिक तापमान वाली जलवायु सबसे अच्छी मानी जाती है। अधिक तापमान से फलों की वृद्धि अधिक होती है। बीजों के अंकुरण के लिए 22-25 डिग्री सेटीग्रेड तापमान अच्छा रहता है। अब बात करें इसकी खेती के लिए मिट्टी की तो रेतीली और रेतीली दोमट भूमि इसके लिए सबसे अच्छी रहती है। वहीं मिट्टी का पी. एच. मान 5.5-7.0 के बीच होना चाहिए। बता दें कि इसकी खेती अनुपजाऊ या बंजर भूमि में भी की जा सकती है।
तरबूज की खेती के लिए उन्नत किस्में (Watermelon Farming)
तरबूज की कई उन्नत किस्में होती है जो कम समय में तैयार हो जाती है और उत्पादन भी बेहतर देती हैं। इन किस्मों में प्रमुख किस्मेें इस प्र्रकार से हैं-
शुगर बेबी
इस किस्म के फल बीज बोने के 95-100 दिन बाद तोड़ाई के लिए तैयार हो जाते है, जिनका औसत भार 4-6 किलोग्राम होता है। इसके फल में बीज बहुत कम होते है। इस किस्म से प्रति हैक्टेयर 200-250 क्विंटल तक उपज प्राप्त की जा सकती है।
अर्का ज्योति
इस किस्म का विकास भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बंगलौर किया गया है। इस किस्म के फल का भार 6-8 किलोग्राम तक होता है। इसके फलों की भंडारण क्षमता भी अधिक होती है। इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 350 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है
आशायी यामातो
यह जापान से लाई गई किस्म है। इस किस्म के फल का औसत भार 7-8 किलोग्राम होता है। इसका छिलका हरा और मामूली धारीदार होता है। इसके बीज छोटे होते है। इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 225 क्विंटल तक उपज प्राप्त की जा सकती है।
डब्लू. 19
यह किस्म एन.आर.सी.एच. द्वारा गर्म शुष्क क्षेत्रों में खेती के लिए जारी की गई है। यह किस्म उच्च तापमान सहन कर सकती है। इससे प्राप्त फल गुणवत्ता में श्रेष्ठ और स्वाद में मीठा होता है। यह किस्म 75-80 दिन में तैयार हो जाती है। इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 46-50 टन तक उपज प्राप्त की जा सकती है।
पूसा बेदाना
इस किस्म की सबसे बङी विशेषता यह है कि इसके फलों में बीज नहीं होते हैं। फल में गूदा गुलाबी व अधिक रसदार व मीठा होता है यह किस्म 85-90 दिन में तैयार हो जाती है।
अर्का मानिक
इस किस्म का विकास भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बंगलौर द्वारा किया गया है यह एन्थ्रेक्नोज, चूर्णी फफूंदी और मृदुरोमिल फफूंदी की प्रतिरोधी किस्म है प्रति हेक्टेयर 60 टन तक उपज दे देती है।
हाइब्रिड किस्में/संकर किस्में (Tarbuj Ki Kisme)
तरबूज की हाईब्रिड यानि संकर किस्में भी है जिनमें मधु, मिलन और मोहनी प्रमुख रूप से उपयोगी किस्में है।
हाइब्रिड तरबूज की खेती के लिए खेत की तैयारी
खेती की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। इसके बाद देसी हल या कल्टीवेटर से जुताई की जानी चाहिए। इस बात का ध्यान रखे कि खेत में पानी की मात्रा कम या ज्यादा नहीं हो। इसके बाद नदियों के खाली स्थानों में क्यारियां बना लें। अब भूमि में गोबर की खाद को अच्छी तरह मिला दें। यदि रेत की मात्रा अधिक है, तो ऊपरी सतह को हटाकर नीचे की मिट्टी में खाद मिलाना चाहिए।
तरबूज की खेती के लिए बुवाई का तरीका
मैदानी क्षेत्रों में इसकी बुवाई समतल भूमि में या डौलियों पर की जाती है, जबकि पर्वतीय क्षेत्रों में बुवाई कुछ ऊंची उठी क्यारियों में की जाती है। क्यारियां 2.50 मीटर चौङी बनाई जाती है उसके दोनों किनारों पर 1.5 सेमी. गहराई पर 3-4 बीज बो दिए जाते है। थामलों की आपसी दूरी भूमि की उर्वरा शक्ति पर निर्भर करती है। वर्गाकार प्रणाली में 4 गुणा 1 मीटर की दूरी रखी जाती है पंक्ति और पौधों की आपसी दूरी तरबूज की किस्मों पर निर्भर करता है।
तरबूज की खेती में खाद एवं उर्वरक का प्रयोग
गोबर की खाद 20-25 ट्रौली को रेतीली भूमि में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए। यह खाद क्यारियों में डालकर भूमि तैयारी के समय मिला देना चाहिए। 80 कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हैक्टर देना चाहिए तथा फास्फेट व पोटाश की मात्रा 60-60 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से देनी चाहिए। फास्फेट व पोटाश तथा नत्रजन की आधी मात्रा को भूमि की तैयारी के समय मिलाना चाहिए तथा शेष नत्रजन की मात्रा को बुवाई के 25-30 दिन के बाद देना चाहिए। खाद उर्वरकों की मात्रा भूमि की उर्वरा शक्ति पर निर्भर करती है। उर्वरा शक्ति भूमि में अधिक हो तो उर्वरक व खाद की मात्रा कम की जा सकती है।
तरबूज की खेती में सिंचाई प्रबंधन
तरबूज की खेती में बुवाई के करीब 10-15 दिन के बाद सिंचाई की जानी चाहिए। वहीं यदि आप इसकी खेती नदियों के किनारों पर कर रहे है तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। क्योंकि यहां की मिट्टी में पहले से ही नमी बनी हुई रहती है।
तरबूज की तुड़ाई
तरबूज के फलों को बुवाई से 3 या साढ़े तीन महीने के बाद तोडऩा शुरू कर दिया जाता है। फलों को यदि दूर भेजना हो तो पहले ही तोड़ लेना चाहिए। प्रत्येक जाति के हिसाब से फलों के आकार व रंग पर निर्भर करता है कि फल अब पक हो चुका है। आमतौर से फलों को दबाकर भी देख सकते हैं कि अभी पका है या कच्चा। फलों को डंठल से अलग करने के लिए तेज चाकू इस्तेमाल किया जा सकता है।
प्राप्त उपज
तरबूजे की पैदावार किस्म के अनुसार अलग-अलग होती है। सामान्यत: तरबूजे की औसतन पैदावार 800-1000 क्विंटल प्रति हेक्टर फल प्राप्त हो जाते हैं।
तरबूज की खेती पर आने वाला खर्च
5000 रुपए खेत तैयारी, बोवनी और, खाद
1500 रुपए पांच किलो बीज
4000 रु. कीटनाशक
6000 तुड़ाई पर 30 मजदूरों की जरूरत
16500 रु. कुल खर्च
तरबूज की खेती से प्राप्त लाभ/आय का गणित
जैसा कि बाजार में तरबूज के बीज 10000 रुपए प्रति क्विंटल बिकता है। तो 35 क्विंटल बीज उत्पादन पर 350000 रुपए और इसमें से खर्चा- 16500 रुपए हटा दें तो भी आप इससे 3,33500 रुपए का शुद्ध मुनाफा कमा सकते हैं।